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शैलपुत्री : देवी दुर्गा के नौ रूप में से पहला स्वरूप

हिंदू धर्म विश्व के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है, और इसमें पौराणिक कथाओं और पूजा-अर्चना की समृद्ध परंपरा है। देवी दुर्गा, सबसे लोकप्रिय हिंदू देवी-देवताओं में से एक हैं, जिन्हें दिव्य शक्ति और मातृ शक्ति का अवतार माना जाता है। उनके सम्मान में नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है और इस दौरान देवी…

Shailputri: The first of the nine forms of Goddess Durga

हिंदू धर्म विश्व के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है, और इसमें पौराणिक कथाओं और पूजा-अर्चना की समृद्ध परंपरा है। देवी दुर्गा, सबसे लोकप्रिय हिंदू देवी-देवताओं में से एक हैं, जिन्हें दिव्य शक्ति और मातृ शक्ति का अवतार माना जाता है। उनके सम्मान में नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है और इस दौरान देवी के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। शैलपुत्री देवी देवी दुर्गा का पहला रूप हैं, और नवरात्रि के पहले दिन पूजी जाती है।

देवी शैलपुत्री का रूप

शैलपुत्री देवी देवी दुर्गा का पहला रूप हैं, और उन्हें हिमालय की बेटी माना जाता है। उनके नाम “शैल” का अर्थ पर्वत है, और “पुत्री” का अर्थ बेटी है। उन्हें भगवान शिव की पत्नी सती या पार्वती के नाम से भी जाना जाता है। इस रूप में, देवी को एक बैल की सवारी करने वाली एक सुंदर स्त्री के रूप में चित्रित किया गया है, जिनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में एक कमल का फूल है। बैल धर्म या धार्मिकता का प्रतिनिधित्व करता है, और कमल पवित्रता का प्रतीक है।

किंवदंती और पौराणिक कथा

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, शैलपुत्री देवी का जन्म राजा दक्ष और रानी प्रसूति की बेटी के रूप में हुआ था। बाद में उनका विवाह भगवान शिव से हुआ, लेकिन उनके पिता की इस विवाह में सम्मति नहीं थी। एक बार उन्होंने एक भव्य यज्ञ आयोजित किया जिसमे समस्त देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया लेकिन दक्ष ने अपने जमाई भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। जब सती को इस बारे में पता चला, तो उन्हें बहुत दुख हुआ और उन्होंने बिन बुलाए यज्ञ में भाग लेने का फैसला किया। हालाँकि, शिव ने सती को यज्ञ में न जाने की सलाह दी , पर देवी उनके मत के विरुद्ध यज्ञ में भाग लेने चली गई | उनके पिता ने सभी अतिथियों के सामने सती और भगवान शिव का घोर अपमान किया, जिससे सती इतनी क्रोधित और अपमानित हुईं कि उन्होंने खुद को यज्ञ की आग में झोंक कर प्राण त्याग दिए। बाद में शिव ने दक्ष को उचित दंड दिया जो एक दूसरी कथा है जो हम किसी दूसरे लेख में देखेंगे

सती अपने अगले जन्म में, उन्होंने हिमालय की बेटी पार्वती के रूप में जन्म लिया। और घोर तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न करने के बाद उनसे विवाह किया और सनातन धर्म की शिव के अर्धांगिनी के रूप में सबसे शक्तिशाली देवी बन गई। ऐसा भी माना जाता है कि शैलपुत्री देवी ने राक्षस दुर्गम को विनाश किया था, जो देवताओं और मनुष्यों को पीड़ा दे रहा था। इस प्रकार उन्होंने विश्व में शांति एवं व्यवस्था की स्थापना की।

पूजा और उत्सव

नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री देवी की पूजा की जाती है, जो नवरात्रि की शुरुआत का प्रतीक है। भक्त देवी को फूल, धूप और मिठाई चढ़ाते हैं, और वे प्रार्थना भी करते हैं और भजन (भक्ति गीत) गाते हैं। शैलपुत्री देवी की पूजा से भक्तों के जीवन में शांति, सुख और समृद्धि लाती है।

नवरात्रि के प्रथम दिन के साधना का महत्व : योग साधना की परिपेक्ष में

मूलाधार चक्र, हमारे सूक्ष्म शरीर में स्थित सात चक्रों में से प्रथम चक्र है, और यह हमारे रीढ़ के आधार पर स्थित होता है। मूलाधार चक्र पृथ्वी तत्व से जुड़ा है और शरीर और मन की नींव और स्थिरता का प्रतिनिधित्व करता है।

नवरात्रि के संदर्भ में शैलपुत्री की पूजा को मूलाधार चक्र से संबंधित बताया गया है क्योंकि शैलपुत्री पृथ्वी की मूल ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती हैं और स्थिरता, पृथ्वी और शक्ति के गुणों से जुड़ी हैं जो मूलाधार चक्र का भी प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए, नवरात्रि के दौरान शैलपुत्री की पूजा करने से मूलाधार चक्र को सक्रिय और संतुलित करने का अवसर प्राप्त होता है, जिससे फ़लस्वरुप शारीरिक और भावनात्मक स्थिरता, आंतरिक शक्ति को बढ़ावा मिलता है। शैलपुत्री की दैवीय ऊर्जा का आह्वान करके, ब्रह्मांड की मौलिक रचनात्मक ऊर्जा का भी आह्वान किया जा सकता है, जिसे मूलाधार चक्र के माध्यम से प्रवाहित करके बाकि चक्रो तक यात्रा संभव होती है।

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Sudeep Chakravarty

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नमस्कार दोस्तों ! मेरा नाम सुदीप चक्रवर्ती है और मैं बनारस का रहने वाला हूँ । नए-नए विषयो के बारे में पढ़ना, लिखना मुझे पसंद है, और उत्सुक हिंदी के माध्यम से उन विषयो के बारे में सरल भाषा में आप तक पहुंचाने का प्रयास करूँगा।

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