आगम परम्परा क्या है?

हम लोगों नवरात्र के समय अम्बे माता की आरती गाते है – आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥ आपने कभी सोचा है यह आगम कौन है? आइये जानते है ।

आगम परम्परा क्या है?

मद्रास उच्च न्यायालय ने २२ अगस्त, २०२२, सोमवार को तमिलनाडु सरकार को उन मंदिरों की पहचान करने के लिए पांच सदस्यीय पैनल गठित करने का निर्देश दिया, जिनका निर्माण ‘आगमो’ के अनुसार किया गया था। इसके बाद, मुख्य न्यायाधीश एमएन भंडारी और न्यायमूर्ति एन माला की पहली पीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि मन्दिर के अर्चकों (पुजारियों) की नियुक्ति आगम, नियमों  के अनुसार ही की जाएगी, न कि वैधानिक नियमों के अनुसार

आगम किसे कहते है?

सामान्यतया आगम तंत्र के लिए और निगम वेदों के लिए प्रयुक्त होता है। आगम, सनातन विचारधारा से प्रेरित कई तांत्रिक साहित्य और शास्त्रों का संग्रह है। आगम शब्द का शाब्दिक अर्थ है आगमन। आगम मूलतः संस्कृत के गम धातु से आया है जिसका अर्थ है “जाना” और पूर्वसर्ग आ का अर्थ है “की ओर” जो शास्त्रों को संदर्भित करता है ” शास्त्र जो ऊपर अर्थात ईश्वर लोक से नीचे आया  है”। आगम ग्रंथों में ब्रह्मांड विज्ञान, ज्ञान मीमांसा, दार्शनिक सिद्धांत, ध्यान और उसके अभ्यास पर उपदेश, चार प्रकार के योग, मंत्र, मंदिर निर्माण, देवताओं के पूजन, और इच्छापूर्ति के लिए  साष्टांगिक मार्ग का वर्णन किया गया है। ये विहित ग्रंथ तमिल और संस्कृत में हैं। आगम का प्रचार-प्रसार दक्षिण भारत में प्रमुख रूप से हुआ बाद में इसका संस्कृति करण किया गया इसके अंतर्गत अन्य जातियों ने आगम विचारधारा के प्रतिमानों को अपनाया।

हिंदू धर्म के धार्मिक साहित्य मोटे तौर पर दो खंडों में विभाजित है – १) श्रुति २) स्मृति

श्रुति हिंदू धर्म का केंद्र है । ज्ञान को श्रवण करना “श्रुति” कहलाता हैं । श्रुति का अर्थ होता है सुनना,  वेद, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद श्रुति के अन्तर्गत आते है।

गुरु से मिले ज्ञान को याद रखना ही “स्मृति” कहलाया । स्मृति वैदिक शास्त्र में वेदांग, षड्दर्शन, पुराण, इतिहास, उपवेद, तंत्र, आगम और उपांग शामिल हैं। आगम शब्द बौद्ध, जैन और हिंदू धर्म में पवित्र लेखों  के लिए उपयोग किया जाता है ।

आगम कितने प्रकार के होते है?

उपनिषदों की तरह, आगम के भी कई प्रकार हैं। मूल रूप से  इन्हें  पर तीन भागो  में विभाजित किया जा सकता है:

  • वैष्णव आगम – भगवान विष्णु के रूप में भगवान की पूजा करने के लिए
  • शैव आगम – भगवान शिव के रूप में भगवान की पूजा करने के लिए
  • शाक्त आगम  – देवी मां के रूप में भगवान की पूजा करने के लिए

आगम साहित्य विशाल है, और इसमें 28 शैव आगम, 64 शाक्त आगम (जिसे तंत्र भी कहा जाता है), और 108 वैष्णव आगम (जिसे पंचरात्र संहिता भी कहा जाता है), और कई उप-आगम शामिल हैं। आगम की उत्पत्ति और कालक्रम स्पष्ट नहीं है। कुछ आगम वेद से भी प्राचीन मने जाते है।

वैष्णव आगम

वैष्णव आगमों को चार श्रेणियों में बांटा गया है,

  • वैखानस
  • पंचरात्र
  • प्रतिष्ठासार
  • विज्ञानललिता

इनमें से वैष्णव पंचरात्र आगम को सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं। माना जाता है कि इन आगमों को स्वयं नारायण ने प्रकट किया था। पंचरात्र आगम को फिर से सात उप-आगमों में विभाजित किया गया है:

  • ब्रह्मा
  • शैव
  • कौमार
  • वशिष्ठ
  • कपिला
  • गौतमीय
  • नारदीया

पंचरात्र आगमों के अनुसार, विष्णु की भक्ति आत्मज्ञान का सबसे पक्का मार्ग है, और वह ब्रह्मांड के सर्वोच्च भगवान हैं। एक अन्य मत के अनुसार, Vaikhānasāgama (वैखानसागम) सबसे प्राचीन और सबसे महत्वपूर्ण आगम है, और सभी आगम व्यावहारिक रूप से और शाब्दिक रूप से इस पवित्र आगम का ही अनुसरण करते है। शास्त्रों के अनुसार वैखानसागम मूल रूप से प्रारंभिक वैदिक काल के समय, ऋषि वैखानस के मार्गदर्शन में संकलित किया गया था। श्री माधवाचार्य ने पंचरात्र ग्रंथों को उच्च सम्मान में रखा और उनकी तुलना वेदों और महाकाव्यों के साथ किया, परन्तु ऐसा मानना  है कि आदि  शंकराचार्य का मत वैखानसागम को लेकर अलग था।

गणना के अनुसार दो सौ पंद्रह वैष्णव ग्रंथ हैं। ईश्वर, अहिरबुधन्य, पौष्कर, परम, सत्त्व, बृहद-ब्रह्मा और ज्ञानामृतसार संहिता इसमें महत्वपूर्ण मानें गए हैं।

शैव आगम

शैवों में 28 प्रमुख आगम और 108 उप-आगम हैं। उनमें से कुछ दूसरी शताब्दी के हैं। इन ग्रंथों का अनुसरण विभिन्न शैव पंथो द्वारा किया जाता है, जिनमें शैव सिद्धांत पंथ (दक्षिणी शैव), तमिल शैव, प्रत्याभिज्ञ प्रणाली (कश्मीरी शैव) और वीरा शैव शामिल हैं, जो वेदों के साथ-साथ आगम शास्त्रों को अपने आधिकारिक प्राथमिक ज्ञान के स्रोत के रूप स्वीकार करते हैं।  शैवों में सबसे प्रमुख आगम ग्रंथ कामिका है। ये ग्रंथ शिव को ब्रह्मांड का सर्वोच्च शासक, सर्वोच्च सत्ता, और चेतन सिद्धांत मानते हैं, जबकि शक्ति को अचेतन या प्रकृति मानता है जो बंधन का कारण है। उच्चतम स्तर पर शिव के साथ शक्ति का मिलन ही पाश (बंधन) से मुक्ति है जो जीव को स्वतंत्रता की ओर ले जाता है।

शाक्त आगम

शाक्तों के अनुयायी 27 आगमों का अनुसरण करते हैं जिन्हें तंत्र भी कहा जाता है। शक्ति (विश्व-माता) को सर्वोच्च चेतना के रूप में स्वीकार करते हैं और ईश्वर, दिव्य पुरुष को देवी से निम्न स्थान पर रखते है। शाक्तों में, देवी माँ भ्रम (माया) और मुक्ति दोनों की स्रोत हैं।

शाक्तों के अनुयायी ईश्वर के शक्ति (ऊर्जा) स्वरूप पर विशेष ध्यान देते हैं और देवी मां के लिए विभिन्न प्रकार की अनुष्ठानिक पूजा प्रथाओं का अनुगमन करते हैं। ये यह आगम कुछ मायनों में पुराणों के समान हैं। शाक्त आगम ग्रंथ आमतौर पर शिव और पार्वती के बीच संवाद के रूप में होते हैं। इनमें से कुछ में, शिव, पार्वती द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देते हैं, और अन्य में, पार्वती, शिव द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देती हैं। महाननिर्वाण, कुलार्णव, कुलासर, प्रपंचसार, तंत्रराज, रुद्र-यमला, ब्रह्म-यमला, विष्णु-यमला और टोडला तंत्र, महत्वपूर्ण कुछ प्रमुख कृतियाँ हैं।

आगम कई रहस्यमय अभ्यास सिखाते हैं, जिनमें से कुछ शक्तियाँ प्रदान करते हैं, जबकि अन्य ज्ञान और स्वतंत्रता प्रदान करते हैं। शक्ति भगवान शिव की रचनात्मक शक्ति है। शाक्त वास्तव में शैव धर्म के ही पूरक हैं

लेख का सारांश

आपने अगर दक्षिण भारत के मंदिरों का दर्शन किया है तो आपको यह अवश्य लगेगा कि दक्षिण भारतीय मंदिर उत्तर भारतीय मंदिरों से बहुत अलग हैं। जब हम दक्षिण के मंदिरों में प्रवेश करते हैं, तो अंदर बहुत सारे अन्य देवता और उप -देवता आदि होते हैं। कुछ लोग सीधे मुख्य देवता को देखने जाते हैं जबकि कुछ लोग पहले अन्य सभी देवताओं और उप-देवताओं को देखते हैं जिनकी मूर्तियाँ मुख्य देवता के आसपास स्थित रहती हैं।

दक्षिण भारत में मंदिरों का निर्माण आगम शास्त्र के अनुसार किया जाता है और यहां तक ​​कि मूर्तियाँ भी आगम के अनुसार निर्धारित तरीके से बनाई जाती हैं। आगम के अनुसार मंदिर और मूल स्थान आदि में प्रवेश भी किया जाता है। विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा उत्तर भारत के मंदिरों को नुकसान पहुँचने के बाद अधिकांश उत्तर भारत के स्थानों पर आगम नियमों का कड़ाई से पालन नहीं किया जा रहा है और इसलिए मंदिरों के बनावट के बीच मतभेद हैं। कुछ अंतर, क्षेत्रीय और सांस्कृतिक प्रभावों के कारण भी हैं।

वर्तमान समय में विशेष कर दक्षिण भारत में आगम, मंदिर-पूजा में अपनी पूर्ण अभिव्यक्ति पाते हैं। वे मंदिरों में पूजा प्रथाओं का आधार बनाते हैं, जो आज भी मौजूद है। वे विभिन्न प्रकार के मंदिरों की संरचना और वास्तुकला, पालन किए जाने वाले रीति-रिवाजों, किए जाने वाले अनुष्ठानों और त्योहारों को निर्धारित करते हैं। आगम वास्तव में मंदिरों और इसके उद्देश्य से जुड़ी गतिविधियों को सुचारु रूप से चलाने में अपना योगदान करते है।

आप को यह लेख कैसा लगा कमेंट करके अवश्य बताइयेगा ।

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Sudeep Chakravarty

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नमस्कार दोस्तों ! मेरा नाम सुदीप चक्रवर्ती है और मैं बनारस का रहने वाला हूँ । नए-नए विषयो के बारे में पढ़ना, लिखना मुझे पसंद है, और उत्सुक हिंदी के माध्यम से उन विषयो के बारे में सरल भाषा में आप तक पहुंचाने का प्रयास करूँगा।

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  1. Manish Dangwal Avatar
    Manish Dangwal

    i am a beginner in this field but want to learn about aagam and tantra. please refer some valuable ancient texts on these topics which are available in the market with original text and translations.

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