एक दशक पहले, मुख्य धारा की मीडिया क्षुद्रग्रह खनन के लेखों से भरा हुआ था । लेखों में इन संभावनाओं पर विचार किया गया था कि कैसे कीमती धातुओं, धातु के कंपोजिट और यहां तक कि पृथ्वी पर मिलने वाले दुर्लभ धातुएं क्षुद्रग्रहो के खनन के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है, और यह विचार स्वयं में ही वाणिज्यिक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में क्रांति लाने में सक्षम था ।
इस विषय को समझने के लिए हमें सबसे पहले क्षुद्रग्रह की पृष्ठभूमि के बारे में जानना होगा | तो आइये देखते है क्षुद्रग्रह आखिर है क्या?
क्षुद्रग्रह क्या होता है?
क्षुद्रग्रह, सूर्य की परिक्रमा करने वाले छोटे चट्टानी और धात्विक पिंडों का एक वर्ग है। ये पिंड असफल ग्रहों या प्रोटो-ग्रहों (proto-planets)[प्रोटोप्लैनेट छोटे खगोलीय पिंड हैं जो चंद्रमा के आकार या उससे थोड़े बड़े होते हैं। ये छोटे ग्रह, बौने ग्रह (dwarf planet)से भी छोटे होते है। खगोलविदों का मानना है कि ये पिंड सौर मंडल के निर्माण के दौरान बना है ] के अवशेषों से मिलकर बना होता है। क्षुद्रग्रह, किसी ग्रह के अवशेष सकते हैं जो किसी खगोलीय घटना के कारण नष्ट हो गए है या शायद एक ग्रह बनाने में असफल हो गए हो । क्षुद्रग्रह की संरचना व्यापक रूप से भिन्न होती है, कुछ क्षुद्रग्रहो में दुर्लभ धातुओं की उच्च मात्रा पायी जाती है , जैसे सोना, चांदी और प्लैटिनम, और कुछ में अधिक सामान्य तत्व, जैसे लोहा और निकल अदि की प्रचुरता होती है ।
नासा (NASA) के अनुसार, वैज्ञानिकों ने अब तक 10 लाख से अधिक क्षुद्रग्रहों की पहचान की है। क्षुद्रग्रह मुख्य रूप से सौर मंडल के तीन क्षेत्रों में स्थित हैं। अधिकांश क्षुद्रग्रह मंगल और बृहस्पति की कक्षाओं के बीच एक विशाल वलय में स्थित हैं। बुध से नेपच्यून तक हमारे सौर मंडल में हर जगह क्षुद्रग्रह मौजूद हैं, लेकिन 99.99% मंगल और बृहस्पति के बीच में केंद्रित हैं। इसे मुख्य क्षुद्रग्रह पट्टी (asteroid belt) कहा जाता है।
1801 में, एक तारे का नक्शा बनाते समय, इतालवी पुजारी और खगोलशास्त्री ग्यूसेप पियाज़ी (Giuseppe Piazzi) ने अकस्मात ही मंगल और बृहस्पति के बीच परिक्रमा करते हुए पहले और सबसे बड़े क्षुद्रग्रह, सेरेस (Ceres)की खोज की थी ।
क्षुद्रग्रह कितने प्रकार के होते है?
अधिकांश क्षुद्रग्रहो को तीन मुख्य श्रेणियों में बाँटा गया है :
- सी-टाइप (C-type) – ज्ञात क्षुद्रग्रहों में से 75 प्रतिशत से अधिक इस श्रेणी में आते हैं। सी-टाइप के क्षुद्रग्रहों की संरचना हाइड्रोजन, हीलियम और अन्य *वाष्पशील तत्वों के बिना सूर्य की तरह ही होती है । [वाष्पशील (volatiles), रासायनिक तत्वों और रासायनिक यौगिकों का समूह है जिन्हें आसानी से वाष्पीकृत किया जा सकता है। वाष्पशील में नाइट्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड, अमोनिया, हाइड्रोजन, मीथेन, सल्फर डाइऑक्साइड, पानी और अन्य शामिल हैं]
- एस-टाइप (S-type) – लगभग 17 प्रतिशत क्षुद्रग्रह इस प्रकार के होते हैं। इनमें निकल, लोहा और मैग्नीशियम के भंडार होते हैं।
- एम-टाइप (M-type) – इस प्रकार के क्षुद्रग्रहों की संख्या सीमित होती है, और इनमें निकल और लोहा अधिक मात्रा में पाया जाता है।
विलियम हर्शल (William Herschel) ने 1802 में “asteroid” वाक्य का सबसे पहले प्रयोग किया, लेकिन अन्य वैज्ञानिकों ने ब्रम्हांड में मिलने वाले नए प्रारूपो को छोटे ग्रह के रूप में संदर्भित किया। 1851 तक, 15 नए क्षुद्रग्रह थे, और नामकरण प्रक्रिया में संख्याओं को शामिल करने के प्रथा शुरू हो गई, जिसमें सेरेस को सेरेस-1 के रूप में नामित किया गया था। आज, सेरेस एक क्षुद्रग्रह और एक बौना ग्रह दोनों के रूप में दोनों पदनाम साझा करता है, जबकि शेष क्षुद्रग्रह बने हुए है।
आधुनिक समय में क्षुद्रग्रहों की खोज कहाँ से शुरू होती है?
- क्षुद्रग्रहों का करीब से चित्र लेने वाला पहला अंतरिक्ष यान 1991 में नासा का गैलीलियो (Galileo) था, जिसने 1994 में एक क्षुद्रग्रह की परिक्रमा करने वाले पहले चंद्रमा की भी खोज की थी।
- 2001 में, नासा के NEAR अंतरिक्ष यान ने पृथ्वी की कक्षा से निकट क्षुद्रग्रह इरोस (Eros)का एक वर्ष से अधिक समय तक गहन अध्ययन किया इसके पश्चात मिशन नियंत्रकों ने अंतरिक्ष यान को क्षुद्रग्रह की सतह पर उतारने का फैसला किया। हालाँकि अंतरिक्ष यान को लैंडिंग के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया था, लेकिन NEAR ने सफलतापूर्वक इरोस की सतह पर उतर पाया और एक क्षुद्रग्रह पर सफलतापूर्वक उतरने वाले पहले अंतरिक्ष यान के रूप में कीर्तिमान स्थापित किया।
- 2006 में, जापान का हायाबुसा (Hayabusa) अंतरिक्ष यान, पृथ्वी के निकट से गुजरने वाले क्षुद्रग्रह इटोकावा (Itokawa) पर उतरने और उस पर से उड़ान भरने वाला पहला अंतरिक्ष यान बना। हालांकि इस मिशन के दौरान अंतरिक्ष यान को कई तकनीकी गड़बड़ियों का सामना करना पड़ा, पर अंततः जून 2010 में यह क्षुद्रग्रह से एक छोटी मात्रा में सामग्री पृथ्वी पर लाने में सफल रहा।
- नासा का डॉन (Dawn) मिशन 2007 में मुख्य क्षुद्रग्रह बेल्ट के लिए रवाना हुआ और 2011 में वेस्टा (Vesta) [वेस्टा क्षुद्रग्रह बेल्ट में सबसे बड़ी क्षुद्रग्रहों में से एक है, जिसका औसत व्यास 525 किलोमीटर है] की खोज शुरू हुई। वेस्टा पर एक साल खोज करने के बाद, इसने सेरेस की यात्रा प्रारम्भ किया और 2015 में वहाँ पहुँच गया । डॉन, वेस्टा और सेरेस, की यात्रा करने वाला पहला अंतरिक्ष यान था। यह मिशन 2018 में समाप्त हो गया जब डॉन का ईंधन समाप्त हो गया, हालांकि यह लगभग 50 वर्षों तक सेरेस की परिक्रमा करता रहेगा।
- Hayabusa2, Regolith Explorer (OSIRIS-REx), Lucy, DART spacecraft, Psyche mission इक्कीसवी सदी के कुछ प्रमुख क्षुद्रग्रह अन्वेषण मिशन है |
एक आम क्षुद्रग्रह की सतह का औसत तापमान -100 डिग्री फ़ारेनहाइट (-73 डिग्री सेल्सियस) होता है। ज्यादातर क्षुद्रग्रहों की अवस्था में अरबों वर्षों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है जिसके कारण इनके शोध से प्रारंभिक सौर मंडल के बारे में बहुत कुछ पता चल सकता है।
क्या क्षुद्रग्रहों का खनन संभव हैं ?
नासा, अन्य अंतरिक्ष एजेंसियां और निजी कंपनियां क्षुद्रग्रहों से संसाधन निकालने की संभावानायें तलाश रही है |
‘माइनिंग द स्काई’ (Mining the Sky) के लेखक जॉन एस लुईस (John S. Lewis)अनुसार एक किलोमीटर के व्यास वाले क्षुद्रग्रह का द्रव्यमान लगभग दो बिलियन टन होगा। सौर मंडल में शायद इस आकार के दस लाख क्षुद्रग्रह हैं। लुईस के अनुसार इन क्षुद्रग्रहों में से एक में 30 मिलियन टन निकल, 1.5 मिलियन टन धातु कोबाल्ट और 7,500 टन प्लैटिनम होगा। अकेले प्लैटिनम का मूल्य $150 बिलियन से अधिक आंका गया है |
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Sudeep Chakravarty
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