२२ जुलाई , २०२२ को, भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने, देश के ७५ वें स्वतंत्रता दिवस के वर्षगाँठ के उपलक्ष्य पर राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा ) फहराने के लिए, हर घर तिरंगा अभियान शुरू किया है। इस अभियान के अंतर्गत १३ अगस्त से १५ अगस्त तक देश भर में २० करोड़ से अधिक घरों पर तिरंगा झंडा फहराया जाएगा। यह पहल भारत के संस्कृति मंत्रालय के नोडल मंत्रालय द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव के अन्तर्गत शुरू की गई है।
ध्वज का क्या महत्व है?
मानव सभ्यता के आरम्भ से ही ध्वज को सुरक्षा के प्रतीक के रूप में और लोगों को एक साथ लाने के उद्देश्य से विशेष स्थान मिला है। प्राचीन काल से, ध्वज भारतीय परंपरा का हिस्सा रहे हैं, जो वीरता और धर्म का प्रतीक है।
ध्वज से सम्बंधित एक छोटी सी घटना का विवरण हमें महाभारत में मिलता है। कौरवों के परास्त होने और कुरुक्षेत्र युद्ध समाप्त होने के पश्चात, भगवान कृष्ण अर्जुन को अपने रथ पर युद्ध के मैदान के एक एकांत स्थान पर ले आते हैं। घोड़ों को मुक्त करने के बाद कृष्ण, अर्जुन को रथ से धक्का देके नीचे गिरा देते है। तभी, अर्जुन के रथ के ऊपर ध्वज में विराजमान हनुमान जी गायब हो जाते हैं और केवल खाली ध्वज हवा में लहराता हुआ रह जाता है तत्पश्चात रथ स्वतः ही अग्नि के लपटों में घिरकर भीषण विस्फोट के साथ नष्ट जाता है। भगवान कृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि, भीष्म, द्रोण और कर्ण द्वारा प्रयोग किए गए दिव्यास्त्रों के बल से, रथ कब का नष्ट हो गया होता परन्तु रथ के झंडे पर हनुमान जी की उपस्थिति के कारण ही उसकी रक्षा हो सकी है।
आज भी भारत में लोग अपने घरों के छत पर हनुमान के चित्र अंकित ध्वजों को फहराते है क्योंकि उनका मानना है की हनुमान जी उनकी विपत्तियों से रक्षा करेंगे।
ध्वज की महत्वता के कारण ही भारतीय सेना के प्रत्येक रेजिमेंट का अलग ध्वज है।मध्यकालीन राजाओं और रियासतों के भी व्यक्तिगत झंडे थे। स्वतंत्रता के पश्चात सारे राज्यों ने तिरंगे को भारतीय ध्वज के रूप में अपनाया था। केवल भारत के संविधान के अनुच्छेद ३७० द्वारा राज्य को दिए गए विशेष दर्जे के तहत १९५२ और २०१९ के बीच जम्मू और कश्मीर राज्य को आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त राज्य ध्वज था। पर अनुच्छेद ३७० हटने के पश्चात वहां भी अब भारतीय ध्वज फहराया जाता है।
भारत के राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से पहले विभिन्न रियासतों के शासकों द्वारा अलग-अलग बनावट वाले कई झंडों का इस्तेमाल किया जाता था, १८५७ के विद्रोह के बाद भारत के ब्रिटिश शासकों ने, भारतीय ध्वज का विचार पहली बार उठाया था, जिसके परिणामस्वरूप अंग्रेजों के शाही शासन की स्थापना हुई।
इसी समय के आसपास राष्ट्रवादीयों की ध्वज को लेकर राय, धार्मिक परंपरा से प्रेरित होने लगी थी। जिन प्रतीकों का समर्थन हुआ, उनमें बाल गंगाधर तिलक द्वारा सुझाया गया गणेश, अरबिंदो घोष और बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा सुझाई गई काली थीं। एक अन्य प्रतीक गाय (गौ माता) भी थी। हालांकि, ये सभी प्रतीक, हिंदू-केंद्रित थे और भारत की मुस्लिम आबादी इनके साथ एकमत नहीं हो पाई।
राष्ट्रीय ध्वज का क्रम-विकास (१९०४-१९४७)
स्वामी विवेकानंद की आयरिश शिष्या सिस्टर निवेदिता को १९०४ में पहले राष्ट्रीय ध्वज के रचयिता के रूप में श्रेय दिया गया था। इस ध्वज को पीले और लाल दो रंगों का उपयोग करके बनाया गया था। ध्वज के केंद्र में ‘वज्र’ चिन्हित था जो शक्ति का प्रतीक था और केंद्र में एक सफेद कमल था जो पवित्रता को दर्शाता था। बंगाली में “বন্দে মাতরম্” (वन्दे मातरम्) शब्द वज्र के दोनों ओर बाँटकर लिखा गया था ।
१९०५ में बंगाल के विभाजन के परिणामस्वरूप भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक नए ध्वज का प्रारूप तैयार हुआ, जिसका उद्देश्य विभिन्न जाती और धार्मिक सम्प्रदाय के लोगों को एक जुट करना था। वंदे मातरम् ध्वज, राष्ट्रवादी स्वदेशी आंदोलन का हिस्सा था, जिसमें भारतीय धार्मिक प्रतीकों का प्रतिनिधित्व पश्चिमी हेराल्डिक फैशन में किया गया था। तिरंगे झंडे में ऊपरी हरी पट्टी पर आठ सफेद कमल शामिल थे, जो आठ प्रांतों का प्रतिनिधित्व करते थे, नीचे की लाल पट्टी पर एक सूर्य और एक अर्धचंद्राकार था, और केंद्रीय पीले बैंड पर हिंदी में वन्दे मातरम् का नारा था।
वन्दे मातरम् ध्वज, भारत के पहले अनौपचारिक झंडों में से एक था। इसकी रचना सचिंद्र प्रसाद बोस और हेमचंद्र कानूनगो द्वारा किया गया था और ७ अगस्त १९०६ को पारसी बागान स्क्वायर (गिरीश पार्क), कलकत्ता में फहराया गया था।
१९०७ में , वन्दे मातरम् ध्वज से थोड़ा संशोधित संस्करण, स्टटगार्ट (जर्मनी का एक शहर ) में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस के दूसरे अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में मैडम भीकाजी कामा द्वारा फहराया गया था। यह ध्वज कई बार उपयोगों में आने के बावजूद भारतीय राष्ट्रवादियों के बीच उत्साह पैदा करने में विफल रहा।
१९१६ में, पिंगली वेंकय्या ने मद्रास उच्च न्यायालय के सदस्यों द्वारा वित्त पोषित परियोजना के अन्तर्गत, ध्वज के तीस नए डिजाइन एक पुस्तिका के रूप प्रस्तुत किए। इन कई प्रस्तावों और सिफारिशों ने ध्वज आंदोलन को जीवित रखने के अलावा और कुछ नहीं किया। उसी वर्ष, एनी बेसेंट और बाल गंगाधर तिलक ने होमरूल आंदोलन के तहत एक नया ध्वज अपनाया। ध्वज में ऊपरी बाएँ कोने में यूनियन जैक, ऊपरी दाएँ कोने में एक तारा और अर्धचंद्राकार, और पाँच लाल और चार हरे रंग के वैकल्पिक बैंड की पृष्ठभूमि पर, निचले दाएँ से तिरछे रूप से प्रदर्शित सात सितारे शामिल थे। ध्वज के परिणामस्वरूप किसी भी राष्ट्रवादी ध्वज के खिलाफ पहली बार सरकारी पहल हुई, और कोयंबटूर में एक मजिस्ट्रेट ने इस ध्वज के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया।
अप्रैल १९२१ में, मोहनदास करमचंद गांधी ने अपनी पत्रिका यंग इंडिया में एक भारतीय ध्वज की आवश्यकता के बारे में लिखा, जिसमें केंद्र में चरखा या चरखा के साथ एक ध्वज का प्रस्ताव रखा गया। चरखा का विचार लाला हंसराज द्वारा रखा गया था, और गांधी ने पिंगली वेंकय्या को लाल और हरे रंग के बैनर पर चरखा के साथ एक ध्वज की रूपरेखा बनाने के लिए नियुक्त किया, जिसमें लाल रंग हिंदूओं को और हरा मुसलमानों को प्रदर्शित करता है।
१९३१ में तिरंगे झंडे को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार करने के लिए एक प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी। इस झंडे में तीन धारियां थीं जो क्रमश: केसरिया, सफेद और हरे रंग का था और बीच में महात्मा गांधी के चरखा चिन्हित था। २२ जुलाई १९४७ को संविधान सभा ने तीन पट्टियों और बीच में अशोक चक्र के साथ भारतीय ध्वज अपनाया गया। नतीजतन, कांग्रेस पार्टी का तिरंगा झंडा अंततः स्वतंत्र भारत का तिरंगा झंडा बन गया।
राष्ट्रीय ध्वज को तिरंगा भी कहा जाता है और इसमें तीन रंग की पट्टिया है और केंद्र में अशोक चक्र स्थित है। ये तीन रंग क्रमश: भगवा रंग -साहस और बलिदान, सफेद – सत्य, शांति और पवित्रता, हरा रंग– समृद्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं और अशोक चक्र – धर्म के नियमों का प्रतिनिधित्व करता है
भारत के राष्ट्रीय ध्वज को पिंगली वेंकय्या ने डिजाइन किया था। वह आंध्र प्रदेश के एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे।
विशेष उल्लेख
द इंडियन लीजन, आधिकारिक तौर पर फ्री इंडिया लीजन या ९५० वीं (इंडियन) इन्फैंट्री रेजिमेंट, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान तैयार की गई एक सैन्य इकाई थी | मूल रूप से ब्रिटिश शासन से भारत को आज़ादी दिलाने के लिए इसे एक सैन्य बल के रूप में देखा जा रहा था , यह भारतीय युद्ध कैदियों और यूरोप में रह रहे भारतीय प्रवासियों से बना था। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में इसकी उत्पत्ति के कारण, इसे “टाइगर लीजन” और “आजाद हिंद फौज” के रूप में भी जाना जाता था।
भारतीय स्वतंत्रता सेनानी नेताज़ी सुभाष चंद्र बोस, 1941 में जर्मनी से सहायता लेने के लिए जब बर्लिन आए थे तब उन्होंने आजाद हिंद फौज के गठन की शुरुआत, ब्रिटेन के खिलाफ युद्ध छेड़कर, भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए किया था ।
लेख का सारांश
इस लेख के माध्यम से मैंने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज से जुड़े कुछ जाने-अनजाने तथ्यों को आप तक पहुंचाने का प्रयत्न किया है। एक भारतीय होने के नाते हमें अपने स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी बातों को जानने का पूरा हक़ है। ऐसे बहुत से बिंदु होंगे जिनपर एक लेख के द्वारा प्रकाश डालना सम्भव नहीं हैं उनको हम आगे किसी अन्य लेख में सम्मिलित करेंगे।आप को कौन से तथ्य इस लेख में अच्छे लगे, कमेंट करके अवश्य बताइयेगा।
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Sudeep Chakravarty
नमस्कार दोस्तों ! मेरा नाम सुदीप चक्रवर्ती है और मैं बनारस का रहने वाला हूँ । नए-नए विषयो के बारे में पढ़ना, लिखना मुझे पसंद है, और उत्सुक हिंदी के माध्यम से उन विषयो के बारे में सरल भाषा में आप तक पहुंचाने का प्रयास करूँगा।
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