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चंद्रघंटा: देवी दुर्गा का उग्र रूप (माँ भगवती का तीसरा स्वरूप )

Contents hide 1 परिचय 2 चंद्रघंटा का महत्व 3 देवी चंद्रघंटा का रूप 4 देवी चंद्रघंटा का प्रतीकवाद 5 चंद्रघंटा देवी की साधना – योग साधना की परिपेक्ष में परिचय हिंदू पौराणिक कथाओं में, नवरात्रि के त्योहार के दौरान देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों या अवतारों की पूजा की जाती है। देवी का प्रत्येक…

Chandraghanta The Fierce Form of Goddess Durga

परिचय

हिंदू पौराणिक कथाओं में, नवरात्रि के त्योहार के दौरान देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों या अवतारों की पूजा की जाती है। देवी का प्रत्येक रूप उनकी दिव्य शक्ति के एक अलग पहलू का प्रतिनिधित्व करता है और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। देवी दुर्गा का तृतीय स्वरूप चंद्रघंटा है। इस लेख में, हम चंद्रघंटा के महत्व, उनके स्वरूप और उनके प्रतीकवाद का पता लगाएंगे।

चंद्रघंटा का महत्व

चंद्रघंटा देवी दुर्गा का तीसरा रूप है, जिसकी पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है। चंद्रघंटा शब्द संस्कृत के शब्द “चंद्र” (चंद्रमा) और “घंटा” (घंटी) से लिया गया है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवी दुर्गा अपने बाघ पर चढ़कर राक्षस महिषासुर के विरुद्ध रण में उतरी, तो उनके उग्र रूप ने देवी-देवताओं को भयभीत कर दिया। इसलिए, देवी ने उन्हें भयहीन करने के लिए चंद्रघंटा का रूप धारण किया।

देवी चंद्रघंटा का रूप

चंद्रघंटा को बाघ पर सवार दस भुजाओं वाली एक भयंकर देवी के रूप में दर्शाया जाता है। वह अपने माथे पर अर्धचन्द्र के आकार का आभूषण पहनती है, इसलिए उनका नाम चंद्रघंटा है। वह अपने आठ हाथों में त्रिशूल, तलवार, धनुष और बाण और कमल धारण किये हुई हैं। उनका नौवां हाथ आशीर्वाद देने की मुद्रा में है, जबकि उनके दसवें हाथ में घंटी या घंटा है, जो आध्यात्मिक चेतना के जागरण का प्रतीक है।

देवी चंद्रघंटा का प्रतीकवाद

देवी चंद्रघंटा वीरता, साहस और निडरता से सम्बन्ध रखती है। उनकी दस भुजाएँ दस दिशाओं और उनके भक्तों की हर तरफ से रक्षा करने की क्षमता का प्रतीक हैं। उनके अस्त्र बुराई से लड़ने और अपने अनुयायियों की रक्षा करने की उनकी तत्परता का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके माथे पर अर्धचंद्र प्रकृति की सुंदरता और स्त्री सिद्धांत का प्रतिनिधित्व करता है। माना जाता है कि उनकी घंटी या घंटा की आवाज नकारात्मक ऊर्जा को दूर भाग जाती है और सकारात्मकता को बढ़ावा देती है।

चंद्रघंटा देवी की साधना – योग साधना की परिपेक्ष में

चंद्रघंटा मणिपुर चक्र की स्वामिनी है। मणिपुर चक्र नाभि के ऊपर स्थित होता है और व्यक्तिगत शक्ति, आत्मविश्वास और साहस से जुड़ा होता है। माना जाता है कि चंद्रघंटा के उग्र रूप और वीरता इस चक्र से जुड़ी हुई है, जो हमारे आत्म-मूल्य, प्रेरणा और इच्छाशक्ति को नियंत्रित करती है। इस चक्र पर ध्यान करके और चंद्रघंटा की ऊर्जा का आह्वान करके, चक्र को सक्रिय और संतुलित किया जा सकता है, जिससे अधिक आत्मविश्वास और आंतरिक शक्ति प्राप्त होती है।

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Sudeep Chakravarty

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नमस्कार दोस्तों ! मेरा नाम सुदीप चक्रवर्ती है और मैं बनारस का रहने वाला हूँ । नए-नए विषयो के बारे में पढ़ना, लिखना मुझे पसंद है, और उत्सुक हिंदी के माध्यम से उन विषयो के बारे में सरल भाषा में आप तक पहुंचाने का प्रयास करूँगा।

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