परिचय
हिंदू पौराणिक कथाएं शक्तिशाली देवी-देवताओं की कहानियों से भरी पड़ी हैं, जिनके पास अपार शक्ति, साहस और ज्ञान है। कात्यायनी एक ऐसी देवी हैं जो पूरे भारत में भक्तों द्वारा व्यापक रूप से पूजनीय हैं। इस लेख में, हम देवी कात्यायनी की कथा, हिंदू पौराणिक कथाओं में उनके महत्व और कैसे वह आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं, की चर्चा करेंगे। देवी कात्यायनी का रूप में, वह हर उस पहलू का प्रतिनिधित्व करती है जिसे लौकिक दृष्टि से देखा या समझा नहीं जा सकता। कात्यायनी, दिव्यता के गहरे और सबसे जटिल रहस्यों का प्रतिनिधित्व करती हैं। देवी कात्यायनी उस दिव्य सिद्धांत और देवी माँ के रूप का प्रतिनिधित्व करती हैं जो विध्वंस शक्ति की द्योतक है जैसे कि भयानक प्राकृतिक आपदाए।
देवी कात्यायनी का उद्भव
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, कात्यायनी का जन्म राक्षसों के राजा महिषासुर के प्रति देवताओं के क्रोध से हुआ था। देवताओं को महिषासुर के विरुद्ध भीषण युद्ध का सामना करना पड़ रहा था, लेकिन वे उसे पराजित करने में असमर्थ थे। फिर देवताओं ने भगवान ब्रह्मा से याचना की , जिन्होंने उन्हें एक शक्तिशाली योद्धा देवी बनाने की सलाह दी, जो महिषासुर को हराने में सक्षम हो। देवताओं ने तब अपनी दिव्य ऊर्जाओं को संयोजित किया, और उनके सामूहिक क्रोध से एक भयंकर देवी प्रकट हुई। वह योद्धा देवी कात्यायनी थीं।
रूप और प्रतीकवाद
कात्यायनी को चार भुजाओं वाली एक युवा, सुंदर महिला के रूप में दर्शाया गया है। वह अपने तीन हाथों में एक तलवार, एक कमल और एक ढाल रखती है, जबकि चौथा हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में होता है। वह लाल वस्त्र पहनती है और गहनों से सजी होती है, और उसके बाल जूड़े में बंधे होते हैं।
कात्यायनी का महत्व
कात्यायनी को शक्ति, साहस और विजय के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। वह दिव्य स्त्री ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है जो किसी भी बाधा या चुनौती पर काबू पाने में सक्षम है। उन्हें महिलाओं की रक्षक भी माना जाता है और कई युवा लड़कियां उनसे सुखी और सफल वैवाहिक जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं। नवरात्रि में षष्ठी तिथि के दिन होती है। षष्ठी देवी मां को ही पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में स्थानीय भाषा में छठ/छठी मैया कहते हैं।
कात्यायनी शक्तिपीठ
स्वामी केशवानंद ब्रह्मचारी महाराज ने, बनारस के प्रसिद्ध गृहस्त संत, श्री श्री श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय से क्रिया योग की दीक्षा प्राप्त की थी | गुरु के निर्देश अनुसार हिमालय के गुप्त योगियों से मिलने के लिए उन्होंने बर्फ से ढकी चोटियों और घाटियों में लगभग 33 साल बिताए। वहीं एक दिन ध्यान में उनको सर्वशक्तिमान देवी कात्यानी के दर्शन हुए, देवी ने आदेश दिया कि वे वृंदावन जाएँ और पुराणों में वर्णित शक्ति पीठस्थान का पता लगाकर, देवी कात्यायनी की मूर्ति स्थापित करें और सिद्धि लाभ के लिए देवी की पूजा शुरू कर अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मिशन पूरा करें। देवी के आदेशानुसार वे वृंदावन आए और राधा बाग में यमुना नदी के किनारे एक छोटी सी झोपड़ी में रहने लगे, कुछ दिनों में शक्ति पीठ की पहचान कर उन्होंने धीरे-धीरे भूमि का अधिग्रहण किया और वर्ष 1923 में देवी कात्यानी के वर्तमान मंदिर और एक आश्रम का निर्माण किया, जहाँ उन्होंने अपना शेष जीवन बिताया और अक्टूबर 1942 को उन्होंने “महासमाधि” प्राप्त की।
पुराणों से अनुसार उत्तरप्रदेश के मथुरा के निकट वृंदावन के भूतेश्वर स्थान पर माता के गुच्छ और चूड़ामणि गिरे थे।यहाँ के भैरव को भूतेश कहते हैं। यहीं पर आद्या कात्यायिनी मंदिर, शक्तिपीठ भी है, वृन्दावन स्थित श्री कात्यायनी पीठ ज्ञात 51 पीठों में से एक अत्यन्त प्राचीन सिद्धपीठ है।
कात्यायनी की साधना – योग साधना की परिपेक्ष में
जब हम आज्ञा चक्र पर अपना ध्यान रखकर देवी कात्यायनी का ध्यान करते हैं, तो वह हमें गहन ज्ञान, सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। जीवन के सभी 4 लक्ष्य जैसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देवी कात्यायनी की कृपा से आसानी से प्राप्त हो जाते हैं जब आप पूर्ण विश्वास के साथ समर्पण करते हैं। इसके अलावा, जब हम भक्ति के साथ उनकी पूजा करते हैं, तो देवी कात्यायनी में हमारे पिछले जन्मों के संचित पापों से हमें मुक्त करने की शक्ति होती है।
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Sudeep Chakravarty
नमस्कार दोस्तों ! मेरा नाम सुदीप चक्रवर्ती है और मैं बनारस का रहने वाला हूँ । नए-नए विषयो के बारे में पढ़ना, लिखना मुझे पसंद है, और उत्सुक हिंदी के माध्यम से उन विषयो के बारे में सरल भाषा में आप तक पहुंचाने का प्रयास करूँगा।
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