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सिद्धिदात्री: सिद्धियों की देवी (माँ भगवती का नौवां स्वरूप )

हिंदू पौराणिक कथाओं में, सिद्धिदात्री को चार भुजाओं वाली देवी के रूप में दर्शाया गया है जो सिंह या कमल के फूल पर सवार होती हैं।

Siddhidatri the Divine Mother of Accomplishments

परिचय

साधन यात्रा पर साधक को देवी अपने नौवें और अंतिम स्वरूप, सिद्धिदात्री, के रूप में सिद्धि प्रदान करती हैं। नवरात्रि के प्रत्येक दिन का एक महत्व है, लेकिन नौवां दिन सबसे प्रमुख है, क्योंकि यह देवी पूजा का अंतिम और समापन दिन है।

सिद्धिदात्री की पूजा नवरात्र के नौवें दिन की जाती है। “सिद्धि” शब्द का अर्थ है अलौकिक शक्ति या उपलब्धि, और “दात्री” का अर्थ है दाता या प्रदाता। इसलिए, सिद्धिदात्री देवी हैं जो अपने भक्तों को सिद्धियां या अलौकिक शक्तियां प्रदान करती हैं।

देवी सिद्धिदात्री का स्वरूप और महत्व

हिंदू पौराणिक कथाओं में, सिद्धिदात्री को चार भुजाओं वाली देवी के रूप में दर्शाया गया है जो सिंह या कमल के फूल पर सवार होती हैं। वह अपने चार हाथों में एक कमल का फूल, एक गदा, एक शंख और एक में चक्र धारण करती हैं। देवी का मुकुट, रत्न और अन्य विभिन्न आभूषणों से भी सुशोभित है।

  • कमल: कमल की तरह पूरी तरह से खिलने का मतलब है कि आध्यात्मिक यात्रा की परिपूर्णता। कुंडलिनी शक्ति जो पहले चक्र में शैलपुत्री देवी के रूप में जागृत हुई, अब सिद्धिदात्री देवी के रूप में सहस्रार चक्र पर पूरी तरह से खिल चुकी है।
  • उपासक: देवी के चारो तरफ महान संत और यहां तक ​​कि राक्षसो को भी चित्रित किया जाता है।क्योंकि साधना का अधिकार सबको है और सिद्धि प्राप्ति के लिए वह देवी पर निर्भर है।
  • गदा : शक्ति का प्रतीक जो अज्ञानता को दूर करती है, और अहंकार पर अंतिम प्रहार करता है।
  • चक्र : कर्म का समापन अर्थात कर्म बंधन से मुक्ति।
  • शंख: विजय ध्वनि, जो हमें अपने शाश्वत स्रोत तक वापस ले जाती है यही वास्तविक सिद्धि है।
  • लाल वस्त्र : वीरता और छत्रछाया का प्रतीक है; वह हमेशा दुष्टों का नाश करने, भक्तो रक्षा करने और उन पर कृपा करने में व्यस्त रहती हैं।

देवी सिद्धिदात्री की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने सिद्धिदात्री की पूजा करके आठ सिद्धियों या अलौकिक शक्तियों को प्राप्त किया था। ये आठ सिद्धियाँ हैं अणिमा (छोटा स्वरुप धारण करने की क्षमता), महिमा (छोटा स्वरुप धारण करने की क्षमता), गरिमा (भारी बनने की क्षमता), लघिमा (हल्का बनने की क्षमता), प्राप्ति (कुछ भी हासिल करने की क्षमता), प्राकाम्य (किसी भी इच्छा को पूरा करने की क्षमता), ईशित्व (सब कुछ नियंत्रित करने की क्षमता), और वशित्व (किसी भी चीज़ को वश में करने की क्षमता)।

सिद्धिदात्री की साधना – योग साधना की परिपेक्ष में

सिद्धिदात्री की साधना (आध्यात्मिक अभ्यास) में उनकी दिव्य ऊर्जा से जुड़ने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए भक्ति और ध्यान शामिल है।

ऐसे कई सिद्ध योगी हुए हैं, जो ध्यान में बैठे हुए, पृथ्वी पर या किसी अन्य लोको की यात्रा कर सकते हैं। भारत, ऐसे कई योगियों को पाकर धन्य है, जो अभी भी इस स्तर की प्राप्ति के लिए साधनाए करते हैं। सिद्ध वे हैं, जो शरीर और मन पर अधिकार कर सकते हैं और इस प्रकार शिव और शक्ति का सही संतुलन अपने भीतर ला सकते हैं।

“सिद्धिदात्री” की उपलब्धि के लिए साधक को परिश्रम के साथ साथ दैवीय आशीर्वाद की भी आवश्यकता होती है। इसलिए साधना प्रथमतः सात चक्रों में स्थित देवी के स्वरूप या दर्शन से पूर्ण होती है, सिद्धिदात्री, “कुंडलिनी शक्ति” का परिष्कृत और अंतिम स्वरूप है। यदि हमारे चक्र असंतुलित हैं तो कुंडलिनी शक्ति स्वतंत्र रूप से ऊर्ध्वगमन नहीं कर सकती है। जब तक हम शरीर, मन और कर्म से इतने मजबूत नहीं हो जाते, हम उस शक्ति की कृपा प्राप्त नहीं कर सकते। इसलिए व्यक्ति को साधन पथ पर धैर्य रखना चाहिए और गुरु वाक्य और परमात्मा पर विश्वास रख साधना जारी रखनी चहिये।

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Sudeep Chakravarty

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नमस्कार दोस्तों ! मेरा नाम सुदीप चक्रवर्ती है और मैं बनारस का रहने वाला हूँ । नए-नए विषयो के बारे में पढ़ना, लिखना मुझे पसंद है, और उत्सुक हिंदी के माध्यम से उन विषयो के बारे में सरल भाषा में आप तक पहुंचाने का प्रयास करूँगा।

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