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भूकंप क्या है – एक विस्तृत जानकारी (what is Earthquake)

Through this post, detailed information has been given about earthquake in Hindi language, why earthquake occurs and what is its reason, all these have been discussed in detail.

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भूकम्प शब्द सुनते ही एक मन में एक भय का संचार होता है । भूकंप कितना विनाशकारी हो सकता है, हम सब ने अवश्य ही इसका उदाहरण तस्वीरों और वीडियो के माध्यम से टीवी, अख़बारों और इंटरनेट पर देखा होगा I आप सबको शायद २०१५ का नेपाल का भूकंप , २००१ में गुजरात के भुज का भूकंप और २००४ में हिन्द महासागर क्षेत्र का भूकंप याद होगा जिसके कारण विनाशकारी सुनामी लहरों का आक्रमण भारत के दक्षिणी तटों पर हुआ था।

जब मैं छोटा था तो दादी कहती थी कि हमारी पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी हुई है और जब वह फुंकारता है तब भूकंप आता है, हममें से शायद सभी ने बचपन में ऐसी ही कुछ अजीब भूकंप के कारण सुने होंगे, जब थोड़ा बड़ा हुआ तो ज्वालामुखी विस्फोट से भूकंप आता है यह पढ़ा, थोड़ी और समझ बड़ी तो पता चला भूकंप का सबसे आम कारण महाद्वीपों का विस्थापन (continental drift) है । लेकिन हम सब ने शायद ही भूकंप के बारे में और जानने की उत्सुकता कही न कही बची है, ऐसे उत्सुक पाठकों के लिए या ब्लॉग समर्पित है।

भूकंप क्या होता है?

भूकंप का अर्थ पृथ्वी की ऊपरी सतह में होने वाला कंपन (जो तीव्र या सामान्य हो सकता हैं ), जो पृथ्वी के स्थलमंडल (Lithosphere)से अचानक ऊर्जा के निकास के परिणामस्वरूप होता है जिसके कारण भूकंपीय तरंगें पैदा होती है।

भूकंप क्यों आते है?

पृथ्वी की ठोस परत या कठोर ऊपरी परत (Crust) को स्थलमंडल (Lithosphere) कहा जाता है। यह चट्टानों और खनिजों से बना है और मिट्टी की एक पतली परत से ढका हुआ है। यह विभिन्न भू-आकृतियों जैसे पर्वत, पठार, मैदान आदि से बना हुआ एक अनियमित सतह है। स्थलमंडल लगभग 60 मील (100 किमी) की गहराई तक फैली हुई है। ये दर्जनों अलग अलग , कठोर ब्लॉकों में टूट गया है जिसे प्लेट्स के नाम से जाना जाता है । सामान्यतः भूपटल पर सात बड़ी व 14 छोटी प्लेटें हैं, जो दुर्बलतामण्डल (Asthenosphere) पर टिकी हुई हैं या यों कहे की तैर रही है, ये प्लेटें तीन प्रकार की हैं, महाद्वीपीय (Continental), महासागरीय (Oceanic) एवं महाद्वीपीय व महासागरीय (Continental-Oceanic)।

पृथ्वी की ऊपरी परत के नीचे संवहन धाराएँ (Convection Currents) ऊष्मा (Heat) को स्थानांतरित करती रहती हैं, जो गर्म होकर सतह से ऊपर उठती हैं और एक वृत्ताकार गति (Circular Motion) में वापस ठंडी होकर नीचे लौट जाती हैं। यहीं संवहन धाराएँ प्लेटों को गतिमान करती हैं।

प्लेटें हमेशा अत्यंत ही धीमी गति से गतिमान रहती हैं | आँकलनो के अनुसार एक टेक्टोनिक प्लेट (लगभग 10 सेमी/वर्ष) , या 33 फीट प्रति 100 वर्ष, या 1 मिलियन वर्षों में 62.5 मील (लगभग 100 किमी) – की औसत दर से आगे बढ़ सकती है।

प्लेटों की इस गति से हल्के भूकंप के झटके हमेशा आते रहते है| जब ये प्लेटे एक-दूसरे की ओर गति करती हुई आपस में सट जाती है, तो तनाव उत्पन्न होने लगता है और तब तक बना रहता है जब तक दोनों में से एक प्लेट टूट न जाए। प्लेट के टूटने से अचानक तनाव, ऊर्जा के रूप में मुक्त होता है जो एक बड़े, विनाशकारी भूकंप का कारण बनती है। प्लेटो की तनावमूलक गति की तीव्रता से जब भूपटल मे एक तल के सहारें चट्टानों का स्थानांतरण हो जाता है, तो पैदा संरचना को भ्रंश (Fault) कहते है। जिस तल के सहारे भूपर्पटी शैल (Crustal Rocks) मे खंडों का स्थानांतरण होता है, उसे विभंग तल अथवा भ्रंश तल (Fault plane) कहते है। 

भूकम्पीय तरंगें क्या होती है ?

भ्रंश के पास चट्टानें विपरीत दिशा में गति करती हैं, जिससे घर्षण पैदा होता है। लेकिन लगातार होने वाली यह गति की प्रक्रिया अंततः घर्षण को परास्त कर देती है जिससे चट्टानों के खंड एक दूसरे पर चढ़ जाते है जिसके फलस्वरूप भारी मात्रा में ऊर्जा का विमोचन होता है। ऊर्जा की यह तरंगें सारे दिशाओ में गति करते हुए भूकम्प के केंद्र से पृथ्वी के सतह तक पहुंचते है। इन्हीं तरंगो को भूकम्पीय तरंगों (seismic waves)के नाम से जाना जाता है। भूकम्पीय तरंगें दो प्रकार की होती है |

  1. भूगर्भीय तरंगें (Body Waves) उद्गम केंद्र (Epicenter) से ऊर्जा मुक्त होने के दौरान पैदा होती हैं और पृथ्वी के अंदरूनी भाग से होकर सभी दिशाओं में आगे बढ़ती हैं, इसलिए इन्हें भूगर्भिक तरंगें कहा जाता है। भूगर्भीय तरंगें दो प्रकार की होती हैं। इन्हें ‘P’ तरंगें व ‘S’ तरंगें कहा जाता है।
  2. धरातलीय तरंगे (Surface Waves), ये तरंगे धरातल के साथ-साथ चलती है। ‘L’ तरंगों को धरातलीय तरंगे कहा जाता है ।
भूकंप से पहले पृथ्वी के अंदर होने वाली गतिविधि

अवकेन्द्र (hypocentre) और उपरिकेंद्र (Epicentre) किसे कहते है ?

पृथ्वी की सतह के नीचे जिस स्थान पर चट्टानें टूटती हैं उसे भूकम्प का उद्गम केंद्र अथवा अवकेन्द्र (hypocenter या focus) कहते हैं। भूतल पर वह बिंदु जो उद्गम केंद्र के समीपतम होता है, अधिकेंद्र अथवा उपरिकेंद्र (Epicentre) कहलाता है। वास्तव में उपरिकेंद्र को पृथ्वी की सतह पर उद्गम केंद्र के ठीक ऊपर एक लंबवत बिंदु के रूप में प्रदर्शित किया जाता है, इस स्थान पर ही भूकम्प की तरंगे सबसे पहले पहुँचती है |

भूकंप की तीव्रता को कैसे नापते है?

भूकंप की तरंगों को एक भूकम्पमापी (seismometers) अथवा भूकम्पलेख (seismographs) के उपयोग से रिकॉर्ड किया जाता है | भूकंप की तीव्रता का मापन रिक्टर पैमाने (Richter Scale) पर किया जाता है | दूसरा एक और पैमाना प्रचलित है जिसे मरकेली (Mercalli Scale) के नाम से जाना जाता है जो भूकंप की तीव्रता की बजाए उसकी ताकत को मापता हैं। मरकेली पैमाना, रिक्टर पैमाने से पुराना है लेकिन उसकी गणना का आधार कम वैज्ञानिक माना जाता है |

भूकम्पमापी (seismometer)
भूकम्पमापी (seismometer)

इसीको ध्यान में रखते हुए, 1932 में कैलिफॉर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलाजी में कार्यरत सिद्धांतिक भौतिक विज्ञानी (Theoretical Physicist) चार्ल्स फ्रांसिस रिक्टर ने भूकंप की तीव्रता मापने का एक गणितीय पैमाना विकसित करने निश्चय किया। बेनो गुटेनबर्ग के निर्देशन में रिक्टर ने 1932 में, भूकंप स्रोतों के सापेक्ष आकार को मापने के लिए एक लघुगुणक (Logarithmic Scale)आधारित मानक पैमाना विकसित किया, जिसे रिक्टर स्केल कहा जाता है। इसे रिक्टर मैग्नीट्यूड टेस्ट स्केल कहा जाता है जो भूकंप की तरंगों को 1 से 9 तक के तीव्रता पर मापाता है।

इस स्केल के अंतर्गत प्रति स्केल भूकंप की तीव्रता 10 गुना बढ़ जाती है और भूकंप के दौरान जो ऊर्जा निकलती है वह प्रति स्केल 32 गुना बढ़ जाती है। इसका मतलब यह हुआ कि 4 रिक्टर स्केल पर भूकंप की जो तीव्रता थी, वह 5 स्केल पर, 4 रिक्टर स्केल का 10 गुना बढ़ जाएगी। इसको एक उदाहरण के द्वारा समझ सकते हैं। रिक्टर स्केल पर भूकंप से होने वाले विनाश का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि 60 लाख टन विस्फोटक (TNT) जितना विनाश कर सकता है उतना ही 8 रिक्टर स्केल तीव्रता का भूकंप कर सकता है।

क्या हम भूकंप की भविष्यवाणी कर सकते हैं?

हम यह नहीं जानते है कि निकट भविष्य में कब, कहाँ, कैसे और कितने बड़े पैमाने पर भूकंप आएंगे।भूकंप विज्ञानी किसी क्षेत्र की पिछली भूकंपीय गतिविधि की औसत दर के आधार पर संभावनाओं की गणना कर सकते है कि एक वर्ष के भीतर, एक विशिष्ट भूकंपीय जोन में कितने भूकंप आ सकते है ।

बहुत सारे उपाख्यानात्मक साक्ष्य मौजूद है जो ये बताते है कि जानवर, मछलियाँ , पक्षिया , सरीसृप और कीड़े – भूकंप से पहले कुछ आश्चर्यजनक व्यवहार प्रदर्शित करते हैं। हालांकि, भूकंपीय घटनाओं से पहले वह ऐसा क्यों करते है, यह अभी वैज्ञानिकों के समझ से परे है।

सबसे ज्यादा भूकंप कहाँ आते हैं?

पिछली भूकंपीय गतिविधियों के आधार पर यह देखा गया है कि वे साल दर साल एक ही सामान्य पैटर्न में कुछ विशेष स्थानों पर आते हैं, मुख्यतः इन्हें तीन बड़े क्षेत्रों में बांटा गया है :

  1. परि-प्रशांत बेल्ट: दुनिया का सबसे बड़ा भूकंप बेल्ट, परि-प्रशांत भूकंपीय बेल्ट (circum-Pacific seismic belt) है।यह प्रशांत महासागर के चारों तरफ का क्षेत्र है, जहां पृथ्वी के लगभग 81 प्रतिशत सबसे बड़े भूकंप आते हैं। सक्रिय ज्वालामुखियों और लगातार आने वाले भूकंपों के कारण इसने “रिंग ऑफ फायर” उपनाम अर्जित किया है। 1960 में चिली के वाल्डिविया शहर में आने वाला 9.5 तीव्रता का भूकंप, 20वीं सदी के सबसे विनाशकारी भूकंपो में दर्ज है । इस भूकंप ने दो मिलियन लोगों को बेघर कर दिया, और इसमें कम से कम 3,000 लोग घायल हुए थे, और लगभग 1,655 लोग मारे गए।
  2. ऐल्पाइड बेल्ट या अल्पाइन-हिमालयन ओरोजेनिक बेल्ट: एल्पाइड भूकंप बेल्ट (Alpide earthquake belt) जावा से सुमात्रा तक हिमालय, भूमध्यसागरीय और अटलांटिक में फैली हुई है। इस बेल्ट में दुनिया के सबसे बड़े भूकंपों का लगभग 17 प्रतिशत हिस्सा है।सबसे विनाशकारी भूकंपो में से कुछ, जैसे कि पाकिस्तान में 2005 में आने वाला 7.6 तीव्रता का भूकंप जिसमें 80,000 से अधिक लोग मारे गए और 2004 में 9.1 तीव्रता का इंडोनेशिया भूकंप, जिसने सुनामी उत्पन्न की जिसमें 230,000 से अधिक लोग मारे गए।
  3. मध्य-अटलांटिक कटक: तीसरा प्रमुख बेल्ट जलमग्न मध्य-अटलांटिक कटक ( Mid-Atlantic Ridge) का अनुसरण करता है। रिज के स्थान पर दो टेक्टोनिक एक-दूसरे की विपरीत दिशा में गमन कर रही हैं ( अपसारी प्लेट के किनारों पर)। अधिकांश मध्य-अटलांटिक रिज गहरे पानी के नीचे और जन मानस से बहुत दूर है, लेकिन आइसलैंड, जो सीधे मध्य-अटलांटिक रिज के ऊपर है, भूकंपीय जोन के अंदर आता है। यहाँ 6.9 तीव्रता जितना बड़ा भूकंप आ चूका है।

लेख का सारांश

भूकंप अपने में एक बहुत बड़ा विषय है, जिसे एक लेख में पूरा समाप्त करना सम्भव नहीं है। पूरे विश्व में भूकंप को लेकर शोध चल रहे है और वैज्ञानिक हर सम्भव प्रयास कर रहे है की कैसे इस प्राकृतिक आपदा के समय लोगों के जीवन की रक्षा की जा सके। आगे किसी दूसरे टॉपिक के अंदर हम इस पर चर्चा करेंगे। आपको यह लेख कैसा लगा कमेंट करके अवश्य बताइयेगा।

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Sudeep Chakravarty

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नमस्कार दोस्तों ! मेरा नाम सुदीप चक्रवर्ती है और मैं बनारस का रहने वाला हूँ । नए-नए विषयो के बारे में पढ़ना, लिखना मुझे पसंद है, और उत्सुक हिंदी के माध्यम से उन विषयो के बारे में सरल भाषा में आप तक पहुंचाने का प्रयास करूँगा।

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